Wednesday, April 14, 2010

स्वतंत्रता और स्वच्छंदता

सत्तर पार कर चुके एक वृद्ध को,
मायूस सड़क पर पड़े देख.
सुनकर के करुण कहानी,
जब पहुंचा घर उनके.....

पहले तो कुत्ते ने अच्छी खबर ली,
फिर पप्पू दहाड़ा - कौन कहता है -
हमने बड़े - बूढों को प्रताड़ित किया है?
हमने तो 'आराम हराम है' के झाडू से,
अपने घर को साफ़ किया है.

श्रवण कुमार की बात मत करो!
वह मूर्ख अनाड़ी निठल्ला था.
तब राजतन्त्र था, अब लोकतंत्र है.
आज विल्कुल हम स्वतंत्र है.
२१वी सदी कम्पूटर युगीन
प्रगतिशील मोडर्न हम हैं.

एक तो चेटिंग से फुर्सत नहीं,
सेंसेक्स भी देखो लुढका है.
इन बुद्धों को इससे लेना क्या?
इनका अपना ही लटका - झटका है.

हमने भेजा था इन्हें घुडशाल,
अब भाग गए तो हम क्या करें?
कुछ काम धाम करते नहीं,
इस बाउंस चेक का हम क्या करें?

यहाँ घर में बिना मतलब चिल्लाते है,
बच्चों का डिविजन ख़राब कराते हैं.
इन्हें खुद कोई पोएम तो याद नहीं,
हमें नीचा दिखाने लिए, हमारे ही बच्चों को,
आप ही की तरह श्रवण कुमार की
धिसी - पिटी कहानी सुनाते हैं.

सुनकर प्रगतिशील बेटे का जवाब,
मेरा सिर चकराया.......
मैंने आँख मूंदकर इतिहास के पृष्ठों को दुहराया,
तो अपनी सभ्यता और संस्कृति में
कंस जैसा चेहरा नजर आया,
उसने हमें बहुत अन्दर तक डराया....

स्वतन्त्रता की यह विषाक्त परिभाषा,
किसने इन्हें पढ़ाया है ?
जो अब तक स्वतंत्रता और स्वच्छंदता
में अंतर इनकी समझ में नहीं आया है.
अब तो साठोत्तरी हुयी अपनी आजादी भी,
यह सोच के मन बहुत ही घबराया है.

मेरी व्यथा को निर्जीव कहे जाने वाले,
बक्से ने समझा है शायद तभी तो,
सुनाया है, साथ - साथ गाया है -
"हम लायें हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के,
इस देश को रखना मेरे बच्चों! संभाल के".

3 comments:

  1. waah atyank marmik...jaane kab vystta ki bheed me itna kho gaye ki asish dene wale haantho ke neeche se sar hi hata liya...

    http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

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