Monday, March 1, 2010

एक दोस्ती ऐसी भी

हाँ बाबू ! स्वतन्त्रता हमारी अब सात्तोत्तरी हो गई, / कथनी - करनी,
आचार - व्यवहार की खाई / और चौडी हो गयी, / अन्नोत्पादन, /
दुग्धोत्पादन में तो / हो गए आत्म निर्भर, / परन्तु कर्ज का बोझ /
और चौगुनी हो गयी. / भग्गू ने शिकायत की.

प्रत्युत्तर में नेता पुत्र बोला -/ नैतिक प्रगति भी खूब की है हमने, /
लड़ते रहे अराजकता, / अकर्मण्यता और अनैतिकता से बलभर; /
हमारे अंतर के बल को तो देख,/ भ्रष्टाचार से लड़ते लड़ते, /
उसपर विजी पा ही ली, / अब भ्रष्टाचार के प्रेत को / बुरी तरह
हराया है / उसे देश की सीमा से बाहर भगाया है. /
इस विजय का राज मत पूछो / यह गुप्त समझौते में आया है. / ...

पहले भ्रष्टाचार शब्द को / सुविधा शुल्क के आवरण में छिपाया, /
अब इसने भी सेंसेक्स की तरह / जोर का उछाल मारा है, /
जो पहले भ्रष्टाचार था, / अब शिष्टाचार की परिधि में समाया है. /
अन्य देशों में कोई कृति भले ही भ्रष्टाचार हो, / हमारे यहाँ तो
अब शिष्टाचार है, / जीवन का श्रेष्ठ आधार है, / और सच कहूं /
तो हमारी भौतिक सम्पन्नता का....... / यही आधार है.

इस देश की मिटटी से / हमारा गहरा नाता है, / इसलिए देश के /
किसानों को मरने नहीं देंगे, / आखिर हमारी रगों में उन्ही का /
खून - पसीना है.... / उनसे कंधे से कंधा मिला लेंगे,... / उनकी
तसल्ली के लिए / हम भी उनके खेतों में ..../
सोने का हल चला लेंगे, / शर्त बस इतनी होगी, /
खेत का कागज अपने नाम करा लेंगे.

जानता हूँ तू जी नहीं पाओगे, / परन्तु चिन्तां न करो, /
तुम्हारी शहादत, बेकार नहीं जायेगी / तुम्हारे नाम का /
ट्यूबेल लगाउंगा और / तुम्हारी औलादों से काम कराउंगा. /
इस प्रकार मित्र धर्म के साथ - साथ राष्ट्र धर्मनिभाउंगा /

अगले जन्म में / जब तुम इस धरा पर आओगे, /
हमे मंत्री रूप में पाओगे, / तब सच कहता हूँ, /
कृष्ण - सुदामा की तरह / दोस्ती निभा दूंगा /
यदि तंदुल की बजाय भाभी को साथ लओगे.

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