tag:blogger.com,1999:blog-6518481384405784783.post6955302485210304393..comments2023-09-19T15:06:11.658+05:30Comments on pragyan-vigyan: टैगोर - आइन्स्टीन परिचर्चा (3)Dr.J.P.Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/10480781530189981473noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-6518481384405784783.post-2175507624838596022010-11-27T12:02:06.635+05:302010-11-27T12:02:06.635+05:30निर्मला जी !
आपकी समीक्षा का स्वागत है. सहमत हू...निर्मला जी !<br />आपकी समीक्षा का स्वागत है. सहमत हूँ आपसे एक नए ब्लॉग का सृजन किया था जिसमे केवल अध्यात्म और विज्ञानं की ही चर्च . समीक्षा की जाएगी परन्तु वह ब्लॉग ठीक से कार्य नहीं कर रहा है और पुराने ब्लॉग पर भी प्रत्कूल प्रभाव पड़ रहे लेकिन इससे यश कार्य रुकेगा नहीं . इसकी उपादेयाका को आप जैसे लोगो का समर्थन जब मिल रहा है तो उत्साह बढेगा ही कम नहीं होगा .<br />sDr.J.P.Tiwarihttps://www.blogger.com/profile/10480781530189981473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6518481384405784783.post-26176505544713736162010-11-27T11:50:18.388+05:302010-11-27T11:50:18.388+05:30भौतिक और अध्यात्म का संयुक्त रूप ही दुनिया मे शान्...भौतिक और अध्यात्म का संयुक्त रूप ही दुनिया मे शान्ति ला सकता है। बहुत ग्यानवर्द्धक पोस्ट है। एक दुर्लभ दस्तावेज है मेरे लिये बुकमार्क कर लिया अभी पिछली पोस्ट भी पढूँगी। धन्यवाद।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6518481384405784783.post-71759006389448980972010-11-27T08:33:02.545+05:302010-11-27T08:33:02.545+05:30दोनों ही विधा सत्य का अन्वेषण करती है. सत्यान्वेषी...दोनों ही विधा सत्य का अन्वेषण करती है. सत्यान्वेषी कभी समझौत नहीं करता इस लिए हब दो सत्यान्वेषी मिलते हैं और बात समझ में नहीं आती तो वे स्वीकार भी नहीं करेंगे और इसके विपरीत यदि बात समझ में आ गयी तो फिर स्वीकार में झिझक भी नहीं, जैसा की आइन्स्टीन महोदय ने किया. वे तो आग्रही और दुरागाही होते हैं जो समझकर भी श्रेष्ठता और महानतर के रोग से पीड़ित होते हैं और सच्चायी को स्वीकार करने का साहस नहीं करते. यह तो मानी हुयी बात है कि सत्य दो नहीं हो सकता, एक से अधिक तो सत्याभास ही हो सकता है, और असत्य तो सैकड़ों हो सकते है. यदि शोध का कार्य ईमानदारी और पूरी निशा से किया जाय तो मंजिल और निष्कर्ष भी एक होगा. हमें यही बात समझनी है और स्वयं भी समझनी है. हमारे लिते दोनों ही उपयोगी हैं. उचित सामंजस्य स्थापित ही जात तो विज्ञान के द्वारा भौतिक सुख के साथ अध्यात्मिक शान्ति भी पा सकते हैं जो आज लभ्य नहीं है. आज समाज को इसी कि महती आवश्यकता है...........Dr.J.P.Tiwarihttps://www.blogger.com/profile/10480781530189981473noreply@blogger.com