tag:blogger.com,1999:blog-6518481384405784783.post2913018942433378375..comments2023-09-19T15:06:11.658+05:30Comments on pragyan-vigyan: परिभाषा आदमी कीDr.J.P.Tiwarihttp://www.blogger.com/profile/10480781530189981473noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-6518481384405784783.post-4172721929417358362010-08-07T10:50:50.193+05:302010-08-07T10:50:50.193+05:30Bechain Atmaa ji
Namaskar
Yun hi bhatkate rahiye m...Bechain Atmaa ji<br />Namaskar<br />Yun hi bhatkate rahiye milte rahiye. kuchh hint kuchh sujhaw kuchh aalochna karte rahiye. Aap ne vrat le hi liya hai vichran karne ka. Thanks Sir for visit and comments.Dr.J.P.Tiwarihttps://www.blogger.com/profile/10480781530189981473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6518481384405784783.post-32886176040149015652010-08-07T10:45:48.503+05:302010-08-07T10:45:48.503+05:30Dr. T S Daral sir
namaskar
आपने मेरा ब्लॉग देखा ट...Dr. T S Daral sir<br />namaskar<br /><br />आपने मेरा ब्लॉग देखा टिप्पणी की अछा लगा इसलिए नहीं की टिप्पणी सकारात्मक है बल्कि इसलिए की विचारों के मिलन की बात आपने की है. आप तो स्वयं एक वैज्ञानिक है, प्रखर चिंतक है: ये विचार तरंगों के रूप में शून्य में विचरण करते हैं जब सम आवृति मिल जाती है हम बहुत कुछ जान लेते हैं दूओर से ही. अनचाहे अनदेखे. यही बात विचारों के साथ भी है. जब आप कुछ भी सोचते हैं उस समय उस सोच वालों की मानसिक ऊर्जा कहीं न कहीं बहुत साथ निभाती है..बात केवल इसे अनुभव करने की है. आपने भी देखा होगा, महसूस भी किया होग जब ट्रेन में जब दो अजनबी बैठते हैं तब आपस में कितना लगाव या दुराव महसूस नोने लगता है जबकि अगला न हमारा मित्र है न शत्रु. कारण वही ऊर्जा का बहाव है. आवृति मच कर गए वाह अच्छा लगने लगा बात करने की अभिलाषा बलवती हो उठी और इसके विपरीत एक अंजना सा दुराव या क्रोध मन में यूँ ही जागृत होने लगता है बिना किसी वाह्य हलचल के. अच्छा नमस्कार ......हंसते रहिये ...हंसाते रहिये मैं तो बोर कर ही रहा हूँ ....फिर कभी....प्रतीक्षा करूँगा.....आपकीDr.J.P.Tiwarihttps://www.blogger.com/profile/10480781530189981473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6518481384405784783.post-43264125111580315752010-08-06T21:42:21.389+05:302010-08-06T21:42:21.389+05:30.. कहाँ पूरी हो पाई है,
मानव की परिभाषा आज भी?
..ब..... कहाँ पूरी हो पाई है,<br />मानव की परिभाषा आज भी?<br />..बहुत खूब.देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6518481384405784783.post-54801199544617336392010-08-06T20:49:14.187+05:302010-08-06T20:49:14.187+05:30"आदमी वह है जो वह नहीं है और
जो वह नहीं है वह..."आदमी वह है जो वह नहीं है और<br />जो वह नहीं है वही वह ह<br /><br />बहुत सही परिभाषित किया है ।<br />इत्तेफाक से ही सही , आज विचार सही मिले हैं । ब्लॉग पर आने का आभार ।डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6518481384405784783.post-62617624614594641412010-08-05T23:21:34.367+05:302010-08-05T23:21:34.367+05:30वंदना जी नमस्कार
वाह!.....भाई .. मान गए ..टिप्पड़ी...वंदना जी नमस्कार<br />वाह!.....भाई .. मान गए ..टिप्पड़ी करना तो कोई आप से सीखे. क्या सूक्ष्म विश्लेषण करती हैं आप. सचमुच यदि किसी कहानी को आचार्य शुक्ल जी जैसा समीक्षक मिल जाय तो उसे चंद्रधर शर्मा गुलेरी बना सकता है. यह शुक्ल जी की लेखनी का कमल है जिसने "उसने कहा था' जैसी कहानी को अमर बना दिया. कुछ वैसी ही प्रतिभा आपमें भी है. इश्वर से अनुरोध्हाई यह कला और प्रखर हो, रंग दिखाए और रंग जमा दे ......साधुवादDr.J.P.Tiwarihttps://www.blogger.com/profile/10480781530189981473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6518481384405784783.post-32925543580880028702010-08-05T16:06:18.965+05:302010-08-05T16:06:18.965+05:30सोचता हूँ आज
ऐसा क्यों कहा
उस महानुभाव ने?
क्या एक...सोचता हूँ आज<br />ऐसा क्यों कहा<br />उस महानुभाव ने?<br />क्या एक संरचना, रूप-रंग<br />आकार -प्रकार के रूप में<br />कभी आदमी हो सकता है -<br />मुश्किल, अपरिभाषित..<br />और........अव्याख्येय?<br /><br />बिल्कुल सही चित्रण कर दिया……………आदमी को परिभाषित करना यदि इतना आसान होता तो आदमी आदमी नही भगवान होता।<br /><br />तन का चित्रण तो हो सकता है<br />किन्तु मन का चित्रण?<br />मन के चित्रण के लिए ही तो<br />रचे गए हैं - अलग शस्त्र,<br />एक स्वतंत्र 'मनोविज्ञान'.<br /><br />बिल्कुल मगर फिर भी मन का चित्रण क्या कोई विज्ञान कर पाया है?मन के पार क्या जा पाया है? मन के पार तो कभी मन भी नही जा पाया तो फिर और कोई कैसे पहुँच सकता है?<br /><br />अब अन्त मे सिर्फ़ इतना ही--------<br />आदमी गर आदमी बन गया होता<br />तो निज खोल मे सिमट गया होताvandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6518481384405784783.post-32473748770168277222010-08-05T12:37:40.157+05:302010-08-05T12:37:40.157+05:30Harkirat ji
Most Welcom
चिन्तक कभी सोता नहीं,
उस...Harkirat ji<br />Most Welcom<br /><br />चिन्तक कभी सोता नहीं, <br />उसकी चिति स्वयं संवेदी होती है,<br />चिंतन प्रक्रिया स्वप्न में भी विमर्श करती है.<br />पथ चलते चलते अपना उत्कर्ष करती है.<br />मौन में भी यह चिंतन धारा सतत प्रदीप्त है,<br />यह मौन चिन्तक का हो, या संस्कृति का;<br />अथवा यह हो ब्लैक होल और प्रकृति का.<br />यही मौन सृजन का पूर्वार्द्ध है; बाकी उत्तरार्द्ध है.<br />पूर्वार्ध का चिन्तक उत्तरार्द्ध का कवि है;<br />कवि की वाणी मौन रह नहीं सकती;<br />मजबूर है वह; चेतना उसकी मर नहीं सकती.<br />लेखनी इस पीडा को देर तक सह नहीं सकती.<br />संवेदना विचार श्रृंखला को; विचार शब्दविन्यास को,<br />और शब्द विन्यास - अर्थ, भावार्थ, निहितार्थ को<br />जन्म देते है. ये शब्दमय काव्य, रंगमय चित्र,<br />आकरमय घट, सतरंगी पट; सभी मौन का प्रस्फुटन है;<br />उसी मृत्तिका और तंतु का विवर्त है.<br />संवेदना के इस दर्द को; सृजन के इस मर्म को,<br />क्या कभी समझेगा यह जमाना ?<br />ये हृदयहीन लोग कवि की कराह पर, <br />दिल की करुण आह पर, वाह ! वाह !! करते है.<br />फिर भी हौसला तो देखो; अंडे पड़े या टमाटर,<br />ये चिन्तक अपनी बात कहने से कब डरते है ?Dr.J.P.Tiwarihttps://www.blogger.com/profile/10480781530189981473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6518481384405784783.post-59424314410830209942010-08-05T12:37:11.698+05:302010-08-05T12:37:11.698+05:30सही कहा आपने..मानव मन को समझना असंभव है...हम खुद भ...सही कहा आपने..मानव मन को समझना असंभव है...हम खुद भी अपने आपको कितना समझ पाते हैं जान पाते हैं...कब गुस्सा होंगे कब किस बात झल्लायेंगे कब किसे गले लगायेंगे किसे गाली देंगे...कब जान पाते हैं...बहुत अच्छी रचना रची है आपने...वाह...बधाई..<br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6518481384405784783.post-46616981422387320892010-08-05T11:39:56.364+05:302010-08-05T11:39:56.364+05:30लेकिन बात बनी कहाँ?
अंततः सभी बड़े विचारक उतर आये ...लेकिन बात बनी कहाँ?<br />अंततः सभी बड़े विचारक उतर आये हैं<br />काव्य की रहस्यमय भाषा में.<br />आंचलिक प्रतीकों और लोक कथाओं में.<br />.इसलिए गाया है मानव मन के गीत को<br />काव्य में, लक्षणा में, व्यंजन में, आदि कवि<br />वाल्मीकि से लेकर अद्यतन चिंतकों और<br />कवियों ने. लेकिन कहाँ पूरी हो पाई है,<br />मानव की परिभाषा आज भी?<br />मानव जो है - देव से भी सुंदर,<br />मानव जो है - दानव से बनी बदतर.<br /><br />क्या बात है .....जय प्रकाश जी ....बहुत ही बेहतरीन रचना .....<br />इंसान को सही परिभाषित किया है आपने ......!!<br /><br />परिचय क्या पूछते हो? दो कदम साथ चलकर के देखो जरा, मान जाओगे खुद,जान जाओगे ...<br /><br />जी चल कर देखते हैं ......सफ़र तो रोमांचक लग रहा है .......!!हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6518481384405784783.post-64414744858881578562010-08-05T10:37:24.860+05:302010-08-05T10:37:24.860+05:30किसी पथिक की प्यास बुझाने, कुँए पर बंधी हुई गगरी ह...किसी पथिक की प्यास बुझाने, कुँए पर बंधी हुई गगरी हुँ। मीत बनाने जग मे आया, मानवता का सजग प्रहरी हुँ। आपके ब्लॉग पर गाया था वहाँ ये अनमोल शब्द-मोती मिले. ये उदगार किसी संवेदनात्मक परिचय के मोहताज नहीं. नाम और रूप में कुछ विशेष नहीं जो है विचारों में है और आपके विचार तो बहुत ही उत्तम, बहुत ही सशक्त. मेरी रचना की सर्जनात्मक टिपण्णी के लिए आभार.Dr.J.P.Tiwarihttps://www.blogger.com/profile/10480781530189981473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6518481384405784783.post-13154525207557613082010-08-05T09:12:49.661+05:302010-08-05T09:12:49.661+05:30मानव जो है - देव से भी सुंदर,
मानव जो है - दानव से...मानव जो है - देव से भी सुंदर,<br />मानव जो है - दानव से बनी बदतर.<br /><br />मानव अगर उंचाईयों को छूता है तो चंद्रमा पर पड़ाव बना लेता है,<br />और पतन की गहराइयों में जाता है तो रसातल तक पहुंच जाता है।<br /><br />अच्छी कविता तिवारी जी<br />आभारब्लॉ.ललित शर्माhttps://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com